Vision & Mission

Vision Mission

प्राचीन समय से एक लोकोक्ति हमारे यहाँ बहुत प्रचलित है –

“गंगा बड़ी गोदावरी,
        तीरथ बड़ी प्रयाग,
धन्यभाग्य कौशल्या के , 
        जहाँ प्रभु लिए अवतार “
वास्तव में इस ज्ञानज्योत विद्यालय से जुड़कर विद्यार्थी अपने को धन्य मानता है , क्योंकि यहाँ उसे पतितपावनी गंगा की तरह अज्ञानता की घने अन्धकार से पूर्णता ज्ञानरूपी प्रकाश देकर उसके जीवनरूपी पथ को आलोकित करनेवाले शिक्षको का समूह है| गंगा की तरह निर्मल धारा में जीवन धारा में डूबकी लगाकर अपने पापो को समूल नष्ट करने की तरह हमारे विद्यार्थी अपने लक्ष्य प्राप्त करने हेतु तन्मयता से सतत प्रयासरत रहे है, और उन्हें इसमें कामयाबी भी मिली है |
चुनौतियां:-
इस नश्वर संसार में चुनौती मिलना प्रकृति का एक आवश्यक अंग है | अपने शैशवकाल से ही मुझे एक नहीं अनेकोंबार चुनौतियों का सामना करना पड़ा है | मैंने इन चुनौतियों को स्वीकार कर अपने बढ़ते कदम को कभी विराम नहीं दिया | अनेक झंझावातों को सहन करते हुए पूरी निष्ठा से अपने कर्तव्यपथ पर अग्रसर होकर मै आज जिस मुकाम पर पहुँचा हूँ , उस मुकाम पर पहुँचाने में हमारे शुभ चिन्तक अभिभावकों का , हमारे लगनशील शिक्षकों का एवं हमारे कर्मनिष्ठ  विद्यार्थियों का भरपूर सहयोग प्राप्त हुआ है | अगर ऐसा न होता तो आज जहाँ मै हूँ वहाँ न होता |

अनुकरण नहीं अनुसरण :-
ज्ञानज्योत विद्यालय का सदा से एक ही उद्येश्य रहा है कि हम किसी का अनुकरण नहीं करेंगे , बल्कि औरों को अनुसरण करने के लिए सन्देश देंगे |ज्ञानज्योत विद्यालय की अवधारणा रही है कि कुछ ऐसे कार्य किए जाएँ जो औरों से हटकर कर हो | दूसरे इस कार्य को देखकर कह उठे  कि काश हमने भी ऐसा किया होता , तो मेरी भी प्रसिद्धी ज्ञानज्योत सरीखा होता |
ऐसा नहीं है कि किसी के द्वारा पूर्व में किए गए कार्य का अनुकरण कर शाबासी लुटना हमारा कम है | अनेक अवसरों पर हमने अपनी कार्य शैली से शिक्षको एवं  विद्यार्थियों के सहयोग से ऐसे-ऐसे आयोजन किए जो अविस्मरणीय है , और आगे भी इससे बेहतर करने का प्रयास जारी रहेगा |
                               
 ज्ञानज्योत विद्यालय की अवधारणा रही है कि कुछ ऐसे कार्य किए जाएँ जो औरों से हटकर कर हो | दूसरे इस कार्य को देखकर कह उठे  कि काश हमने भी ऐसा किया होता , तो मेरी भी प्रसिद्धी ज्ञानज्योत सरीखा होता |
  ऐसा नहीं है कि किसी के द्वारा पूर्व में किए गए कार्य का अनुकरण कर शाबासी लुटना हमारा कम है | अनेक अवसरों पर हमने अपनी कार्य शैली से शिक्षको एवं  विद्यार्थियों के सहयोग से ऐसे-ऐसे आयोजन किए जो अविस्मरणीय है , और आगे भी इससे बेहतर करने का प्रयास जारी रहेगा |
धर्म-कर्म के प्रति जागरूकता :-
“ कर्म अगर है ठीक  तुम्हारा ,
        इज्जत तेरी दासी है |
धर्म अगर है ठीक  तुम्हारा ,
        घर में मथुरा काशी है |”
  विद्यार्थीयों को कर्म की महत्ता से अवगत कराना हमारा मूल उद्देश्य है , क्योंकि कर्म हमारा परछाई होता है | मनुष्य की पहचान उसके कर्मो के आधार पर होती है | किसी भी स्थान पर हमारे कर्म पीछा नहीं छोड़ता | इसलिए हमने विद्यार्थियों को सदैव सत्कर्म की राह अपनाने के लिए प्रेरित किया | यद्यपि यह अगर इतनी आसान नहीं था फिर भी मुझे गौरव है कि मेरे विद्यार्थियों ने इसे आत्मसात कर मुझे गौरवान्वित किया है | भारत धर्म प्रधान देश है | हमारी धर्म में पूर्ण आस्था और विश्वास है | इसी बात को ध्यान में रखते हुए हमने समय-समय पर रामचरित मानस और गीता के कुछ प्रेरक प्रसंगों पर विद्यार्थियों के बीच चर्चा कर उन आदर्शो को ग्रहण करने की दिशा में कदम उठाया  है | जिससे वे एक सबल नागरिक और चारित्र्यवान बनकर एक आदर्श उपस्थित करे |
विद्यार्थियों के लिए दो शब्द :-
सफलता के जिस पायदान पर कदम रखते हुए आप आगे बढ़ रहे है, उन पैरो को राह किसने दिखाई ? वो ज्ञान  किसने दिया , जिसके दम पर आप हजारो के बीच अलग पहचान हुए है |
 निश्चित रूप से गुरु ही वो एक मात्र शख्शियत है, जिसने शिष्य की सफलता को ही अपना वैभव माना | तो आईए हम भी अपनी  पुरातन परम्परा को कायम रखते हुए गुरु-शिष्य के सम्बन्ध को और अधिक प्रगाढ़ कर अपने आगामी पीढियों के लिए अपने निशान छोड़ जाँय “
शिक्षको के नाम सन्देश :-
सामान्य रूप से देखा जाय तो शिक्षक का कार्य योगी के समान है, परन्तु वह स्वयं योगी तो नहीं बन सकता | योगी अपने शिष्य को साधना के द्वारा आत्म-साक्षात्कार करा देता है | शिक्षक को भी उसी की भाँती शिक्षा के संस्कारों के द्वारा शिष्य का इतना उत्थान करना चाहिए कि वह आत्म-साक्षात्कार करने में सक्षम हो सके | उसे इस बात का ध्यान रखना चाहिए कि उसका शिष्य अनेक योनियों से भटक कर मानव जन्म को प्राप्त कर सका है |
  अब इस जीवन में उसका उध्दार होना चाहिए | शिक्षक को अपने शिष्य को चारित्र्यवान एवं कर्तव्यनिष्ठ  बननेकी प्रेरणा देनी चाहिए | उसके चरित्र का ऐसा विकास होना चाहिए, जिससे वह भौतिक एवं आध्यात्मिक दोनों प्रकार की उन्नति कर सके | तभी यह कहा जा सकेगा कि शिक्षक ने अपने कर्त्तव्य का भली- भाँती पालन किया है |
 हादसा:-
जिस प्रकार मनुष्य का समय सदा एक सा नहीं रहता | उसी प्रकार मेरे साथ भी ई.सन २०१३ में एक जलजला आया | मेरे प्राथमिक विभाग के विशाल भवन पर काल का प्रकोप हुआ | प्राथमिक विभाग की आधी भवन नगर निगम ने अवैध बताकर उसे गिरा दिया | भवन की भव्यता कुरूपता में बदल गई | हमारे प्रतिस्पर्धक को व्यंग्य करने का एक सुनहरा मौक़ा मिल गया कि अव ज्ञानज्योत किस प्रकार इस मुसीबत का सामना कर पायेगा | इस विद्यालय के विद्यार्थी कहाँ और किस प्रकार अध्ययन कर सकेंगे | वास्तव में बात भी सही थी | यह हमारे समक्ष एक चुनौती था | विपत्ति की इस घड़ी में हमने धैर्य और संयम का सहारा लिया | इस कठिन  समय में हमारे शुभचिंतको (अभिभावकों) ने अपना भरपूर समर्थन दिया | विद्यार्थियों ने कस्ट सहन कर अपना अध्ययन जारी रखा | धीरे –धीरे सारी समस्याएँ दूर करने में मै सफल रहा और आज फिर से मै पूर्ववत शान से अपना परचम लहरा रहा हूँ |